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lymphatic system notes in hindi

lymphatic system

INTRODUCTION

  • lymphatic system का blood circulation के साथ घनिष्ठ संबंध है।
  • lymphatic system; Lymph, Lymph vessels, Lymph nodes, तथा Lymph organs से मिलकर बना होता है।
  • lymphatic system में blood vessels के समान structure वाली अनेक lymph vessels का network पाया जाता है जिसके द्वारा colorless clear liquid बहता है यह liquid lymph fluid कहलाता है।
  • lymphatic system का मुख्य कार्य foreign body तथा microbes से protection provide करना है।

FUNCTIONS OF LYMPHATIC SYSTEM

  • protein तथा fluid को tissue से blood circulation में वापस लाना।
  • blood तथा tissue के बीच Link का कार्य करना।
  • lymph node द्वारा lymphocytes का निर्माण होती है।
  • microbes का भक्षण करना।
  • यह tissue में पाये जाने वाला waste material को blood के साथ mix कर body से excrement के रूप में बाहर निकालता है।

LYMPH

  • lymph Plasma के समान दिखाई देने वाला fluid होता है।
  • lymph को Accessory circulatory system भी कहा जाता है।
  • इसमें protein की मात्रा कम होती है।
  • इसमें RBC नहीं पाई जाती है, WBC पाई जाती है।
  • lymph में Lymphocytes Lymph node द्वारा पहुँचते हैं।

FORMATION OF LYMPH

blood vessels में बहने वाले blood का hydrostatic pressure cells के Interstitial pressure से अधिक होता है जिसके कारण fluid पदार्थ जैसे water , protein, आदि cells से seeping through tissue cells (Interstitial space) में प्रवेश कर जाते हैं। जिनमें से अधिकांश भाग पुनः blood cells की भित्तियों को पार कर भीतर प्रवेश कर जाता है, लेकिन बचा हुआ part lymphatic capillaries द्वारा lymphatic system में पहुँचता है जो Lymph कहलाता है।

COMPOSITION OF LYMPH

lymph का composition निम्न प्रकार से है-

protein ( 2.0 - 4.5% )

fat ( 5.0 - 15% )

Carbohydrate (130 mg% )

urea ( 23.5 mg%)

croatinine (1.4 mg%)

lymphocyte (1000-20000/cmm )


LYMPH VESSELS

  • lymph vessels की structure Veins के समान होती है जो all body में network के रूप में फैली रहती है।
  • lymph vessels में veins की तुलना में Valve अधिक संख्या में होते हैं।
  • lymph vessels का निर्माण दो प्रकार से होता है।
  • lymph vessels की wall veins की तुलना में thin होती है।
  • साधारणतः lymph vessels micro-lymphatic cells से निकलती हैं।
  • कुछ lymph vessels Lymph space से निकलती हैं।
  • lymph vessels lymph node से गुजरती हुई body की सभी ऊपरी सतह एवं गहराई स्थानों में veins एवं artery के साथ गमन करती है।
  • lymph vessels जुड़कर right lymphatic duct एवं thoracic duct में convert होकर अपने साथ बहने वाले lymph fluid को subclavian veins में धकेल देती है।

LYMPH CAPILLARIES

  • lymph capillaries micro ducts के समान दिखाई देती हैं।
  • lymph capillaries का मुख्य कार्य fat का absorption करना है।
  • fat का absorption करने के फलस्वरूप इसका milky color हो जाता है।

CIRCULATION OF LYMPH

lymph , lymph vessels द्वारा all body के विभिन्न parts में संचारित होती है।

lymph vessels में अधिक संख्या में valve पाए जाते हैं जो lymph को एक ही दिशा में साहित करते हैं अर्थात् back-flow को रोकते हैं।

lymph vessels आपस में जुड़कर दो अन्य large ducts का निर्माण करती है जो निम्न है -

1. दायीं लसीकीय नलिका (Right lymphatic duct) द्वारा लसीका का प्रवाह, सिर, गर्दन, दाहिनी उर्ध्व भूजा, फेफड़ों, दाहिने हृदय द्वारा दायीं सबक्लेवियन शिरा (Right subclavian vein) में होता है।

2 वक्षीय नलिका (Thoracic duct) डायाफ्राम के नीचे से प्रारम्भ होती है जो सिस्टों काइलि (Cisterna chyli) कहलाता है। यह भाग आकार में थोड़ा broad होता है यहाँ से वक्ष नलिका शरीर के बायीं ओर के हिस्सो में लसीका के प्रवाह में सहायता करती है और बायीं जुगुलर शिरा (left jugular trunk), बायीं सबक्लेवियन शिरा (left subclavian vein) के साथ जुड़कर लसीका को रक्त में संचरित करती है।

लसीका पर्व (LYMPH NODES)

लसीका पर्व अण्डाकार या गोल लघु पिण्ड होते हैं।

ये पर्व लसीका वाहिनियों के पथ पर पाए जाते हैं।

इनका निर्माण लसीका ऊतक (Lymphatic tissue) के द्वारा होता है।

ये संयोजी ऊतक द्वारा निर्मित एक कैप्सूल द्वारा आच्छादित होते है।

लसीका पर्यों में एक किनारा उत्तल तथा एक अवतल होता है।

ये मुख्य रूप से ग्रीवा (Neck), बगल (Axilla), वक्ष (Thorax), उदर (Abdomen), जांघ (Thigh) में

स्थित होते हैं।

संरचना (Structure) :-

लसीका पर्व निम्न संरचनाओं से मिलकर बना होता है।

1. कैप्सूल (Capsule):- लसीका पर्व संयोजी ऊतक से निर्मित परत (capsule) द्वारा चारों ओर से

आस्तरित होते हैं।

2. हाइलम (Hilum):- हाइलम लसीका पर्व में विभिन्न संरचनाओं जैसे affferent लसीका वाहिनियाँ, efferent लसीका वाहिनियाँ, रक्त वाहिनियाँ आदि के लिए प्रवेश द्वारा अथवा एक entry point का कार्य करती है।

3. कोर्टेक्स (Cortex):- लसीका पर्व के capsule का नीचे वाला भाग cortex कहलाता है जिसमें lymph

nodules स्थित होते हैं जो लिम्फोसाइटस उत्पन्न करते हैं।

4. मेडयूला (Medulla):- कोर्टेक्स के नीचे वाला भाग medulla कहलाता है जिसे लिम्फ नोड का

आन्तरिक भाग भी कहते है।

Medullary cords :-

लसीका पर्व के आन्तरिक medulla भाग में कई रस्सीनुमा लम्बी संरचनाएं पाई जाती है जो medullary cords कहलाती है। ये लसीका पर्व को जाल (network) के रूप में फैली हुई रहती है।

कार्य (Function):-

1. लसीका पर्व का मुख्य कार्य फिल्टर का होता है, लिम्फ को छानते है।

2. ये एण्टीबॉडी एवं एन्टीटॉक्सिस के निर्माण में सहायक होते हैं।

3. ये लिम्फोसाइट्स के निर्माण में सहायक होते है।

टोन्सिल या गलतुण्डिका (TONSIL)

स्थिति एवं संरचना (Position & Structure):-

टॉन्सिल लसीका ऊतक (Lymphatic tissue) के बने होते हैं। जो संयोजी ऊतकों से निर्मित capsule द्वारा अवस्थित ये लिम्फोसाइट टौन्सिल के पृष्ठ पर विद्यमान तरल में तथा टॉन्सिल के क्रिप्टो में पाए जाते हैं। इनमें लसीका ऊतक की प्रधानता होती है। यदि ये अकेले पाये जाए तो इन्हें एकल ग्रन्थियाँ कहते हैं, और यदि समूह में हो तो पेयर पेच (PAYER patch) कहते हैं।

ये तीन प्रकार के होते हैं-

1 पैलाटाइन टॉन्सिल (Palatine tonsil):- ग्रसनी के दोनों ओर स्थित होते हैं।

2 फेरिजियल टाँन्सिल (Pharyngeal tonsil):- ग्रसनी के ऊपरी पश्च भित्ति में पाये जाते हैं।

3 लिग्वल टॉन्सिल (Lingual tonsil):- Tongue की जड़ पर स्थित होते हैं।

टांसिल संक्रमण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन कभी-कभी स्वयं भी infected हो जाते है।

प्लीहा (SPLEEN)

स्थिति एवं संरचना (Position & Structure):-

  • प्लीहा गहरे बैंगनी (Purple) रंग की ग्रन्थि होती है। ।
  • यह लसीकाभ ऊतक की बनी होती है।
  • यह बायीं हाइपोकोण्ड्रियम में नवीं, दसवीं तथा ग्यारहवीं पसली के पीछे स्थित होती है।
  • यह लगभग 12 से.मी. लम्बी, 7 से.मी. चौड़ी, 2-5 से.मी. मोटी होती है। । इसका वजन लगभग 200 ग्राम होता है।
  • प्लीहा संयोजी ऊतक से बने केप्सूल द्वारा ढकी होती है।

संरचना (Structure):

प्लीहा की संरचना लसीका पर्वो की संरचना के समान दिखाई देती है जो निम्न प्रकार से है :

1. कैप्सूल (Capsule):- प्लीहा की बाहरी सतह संयोजी ऊतक से निर्मित कैप्सूल द्वारा ढकी होती है।

जो प्लीहा के भीतर trabeculae का निर्माण करती है। Trabeculae प्लीहा को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त करता है जिसे खण्ड (lobules) कहते है।

2. प्लीहज लुगदी (Splenic pulp):- प्लीहा के lobules वाले भाग में कोशिकीय पदार्थ पाया जाता है । जिसे प्लीहज लुगदी या प्लीहा मज्जा (Splenic pulp) कहते है। यह दो प्रकार का होता है -

(A) Red pulp :- यह प्लीहा के अधिकांश भाग में पाया जाता है जिसका निर्माण रक्त के साथ आने वाली RBCs एवं WBCs के मिलने से होता है।

(B) White pulp :- सफेद pulp प्लीहज धमनी के चारों ओर स्थित लिम्फोसाइट से होता है।

3. हाइलम (Hilum):- हाइलम spleen में एक खांच अथवा गढ्ढेनुमा संरचना होती है जिसमें से splenic artery, splenic vein, nerves आदि संरचनाएं प्रवेश करती है एवं बाहर निकलती है। जिसका प्रमुख कार्य रोगक्षमता को बनाये रखना होता है।

कार्य (Functions):-

प्लीहा लसीका तंत्र की महत्वपूर्ण संरचना है जिसके निम्नलिखित कार्य है-

(1) रक्त कोशिकाओं का निर्माण करना (Formation of blood cells) :- Foetal life में RBCs का निर्माण प्लीहा द्वारा ही होता है। इसके अलावा Lymphocytes का निर्माण भी प्लीहा में स्थित Malphighian cells द्वारा होता है।

(2) रक्त का संचय करना (Storage of blood):- प्लीहा का महत्वपूर्ण कार्य रक्त को store करना है। Stress, Anorexia तथा Haemorrhage की अवस्था में प्लीहा में संचित रक्त circulation में मिलता है।

(3). RBC तथा WBC को नष्ट करना (Destruction of RBC & WBC):- प्लीहा Old RBC तथा WBC को जालिय अन्तःकला तंत्र द्वारा नष्ट करता है जिसके परिणामस्वरूप हीमोग्लोबिन मुक्त होता है और Bilirubin वर्णन का निर्माण होता है।

(4) वर्णकों का संचय तथा परिसंचरण करना (Storage & Transfer of pigments) :- प्लीहा Bilirubin वर्णक को संचित करने तथा उसे यकृत में Transfer करने का कार्य करता है।

(5) सुरक्षा प्रदान करना (Body defence):- प्लीहा Foreign body से शरीर की रक्षा करता है।

थाइमस ग्रन्थि (THYMUS GLAND) -

स्थिति (Location):- थाइमस ग्रन्थि वक्षीय गुहा (Thoracic cavity) में स्टर्नम के पीछे स्थित लसीकाभ ऊतक से निर्मित एक ग्रन्थि होती है।

संरचना (Structure):- यह हल्के गुलाबी भूरे रंग की ग्रन्थि होती है जो संयोजी ऊतक से बने दो खण्डों द्वारा जुड़ी हुई होती है। इन खण्ड़ों को Right and left खण्ड कहा जाता है ये खण्ड पुनः छोटे-छोटे खण्डकों (Lobules) में विभाजित होते हैं जिनका बाहरी स्तर कोर्टेक्स (Cortex) एवं आन्तरिक भाग (Medulla) कहलाता है। यह ग्रन्थि जन्म के समय आकार में बड़ी होती है लेकिन उम्र के बढ़ने के साथ-साथ छोटी होने लगती है।

कार्य (Functions):- थाइमस ग्रन्थि लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes) & Thymosin hormone का उत्पादन करती है जिसका प्रमुख कार्य रोगक्षमता को बनाये रखना होता है।

RETICULO ENDOTHELIAL SYSTEM

  • शरीर में कुछ ऐसी कोशिकाएँ पाई जाती हैं जो विजातीय कणों (Foreign body) तथा बेक्टीरिया का भक्षण करती हैं।
  • लसीका ग्रन्थियों, प्लीहा और अस्थिमज्जा में इनकी संख्या ज्यादा होती है।
  • ये कोशिकाएँ बहुगणित (Multiplication) होने की क्षमता रखती हैं।
  • ये कोशिकाएँ शरीर को संक्रमण से बचाने में सहयोग देती हैं।
  • इन्हें सामूहिक रूप से जालिय अन्तःकला तन्त्र या रेटिकुलो एंडोथीलियल तन्त्र के नाम से जाना जाता है।

रक्त तथा लसिका में तुलना


रक्त वर्ग (Blood)

लसिका (Lymph)

1

रक्त में लाल रक्त कणिकाएं उपस्थित रहती है ।

लसिका में लाल रक्त कणिकाओं का अभाव रहता है।

2

रक्त में घुलनशील प्रोटीन अधिक मात्रा में पाये ।

लसिका में अघुलनशील प्रोटीन अधिक मात्रा में पाये जाते है।

3

श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या कम होती है।

लसिका में श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या रक्त में स्थित WBCs से ज्यादा होती है।

4

रक्त में CO2 एवं अन्य अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा सामान्य होती है।

लसिका में CO2  एवं अन्य अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा रक्त की तुलना में अधिक होती है।

5

रक्त हिमोग्लोबिन की उपस्थिति के कारण Red दिखाई देता है।

लसिका में हिमोग्लोबिन नहीं पाया जाता है।

6

रक्त में Glucose का Concentration कम रहता है।

लसिका में Glucose का Concentration ज्यादा रहता है।


IMMUNITY

परिचय (Introduction):- प्रतिरक्षा किसी व्यक्ति की वह क्षमता है जो सूक्ष्म जीवों से लडने अथवा

रोग उत्पन्न होने से रोकती है।

परिभाषा (Definition):- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रतिरक्षा (immunity) व्यक्ति के शरीर की वह क्षमता है जिसकी सहायता से वह एन्टिजन (antigen) जैसे बैक्टीरिया वाइरस, प्रोटीन या अन्य रोगाणु आदि को पहचान कर नष्ट करके निष्कासित कर सके प्रतिरक्षा शक्ति कहलाती है।

प्रतिरक्षा के प्रकार (Types of Immunity):- Immunity के प्रकारों को निम्न प्रकार से वर्णित किया गया है-

1. प्राकृतिक प्रतिरक्षा (Natural Immunity):- यह प्रतिरक्षा व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त होती है इसे प्रकृति या प्राकृतिक प्रतिरक्षा भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत निम्न प्रतिरक्षा सम्मिलित है-

(a) व्यक्तिगत प्रतिरक्षा (Individual Immunity):- इस प्रकार की प्रतिरक्षा कुछ व्यक्तियों में जन्म से ही विद्यमान होती है। यही कारण है कि कोई रोग जो एक व्यक्ति में होता है लेकिन वही रोग दूसरे व्यक्ति को संक्रमित नहीं करता।

(b) जातिगत प्रतिरक्षा (Racial Immunity) :- इस प्रकार की प्रतिरक्षा जातिगत पायी जाती है जो उसके आंनुवशिक गुणों पर निर्भर करती है। कुछ रोग जाति विशेष समूहों में होते है।

जैसे-श्वेत प्रजातियों में कुष्ठ रोग (leprosy) होने की संभावना ज्यादा रहती है।

2. उपार्जित या अर्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity):- उपार्जित प्रतिरक्षा जन्म के बाद अर्जित होने वाली प्रतिरक्षा होती है जो सम्पूर्ण जीवनकाल में कभी भी उत्पन्न हो सकती है। यह निम्न प्रकार की होती है -

(A)सक्रिय प्रतिरक्षा (Active Immunity):- जब व्यक्ति सूक्ष्म जीवाणुओं के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आता है तो शरीर इसके विरूद्ध antibody उत्पन्न करता है जो कुछ महीनों से लेकर हफ्तों तक रही है यह दो प्रकार की होती है। (a) प्राकृतिक उपार्जित (NaturalAcquired):- यह प्रतिरक्षा शरीर में एक बार किभी भी रोग के होने के पश्चात स्वतः उत्पन्न होने वाली प्रतिरक्षा प्राकृतिक उपार्जित प्रतिरक्षा कहलाती है। जैसे-Chikenpox.

(b) कृत्रिम उपार्जित (Artificial Acquired):- यह प्रतिरक्षा immunization या टीकाकरण द्वारा उत्पन्न अर्जित प्रतिरक्षा कृत्रिम उपार्जित प्रतिरक्षा कहलाती है। जैसे- DPT. OPV BGG vaccination

(B) निष्क्रिय प्रतिरक्षा (Passive Immunity):- इस प्रकार की प्रतिरक्षा शरीर के द्वारा उत्पन्न नहीं होती है। इसे किसी जानवर या मानव या में उत्पन्न प्रतिरक्षी को अन्य व्यक्ति में प्रवेश कराकर उत्पन्न किया जाता है। यह दो प्रकार की होती है -

(a) प्राकृतिक प्रतिरक्षा (Natural Immunity):- इस प्रकार की प्रतिरक्षा गर्भस्थ शिशु अपनी माता से प्राप्त करता है। इस प्रकार की प्रतिरक्षा माता की प्रतिरक्षण क्षमता पर निर्भर करती है।

(b) कृत्रिम प्रतिरक्षा (Artificial Immunity):- इस प्रकार की प्रतिरक्षा शरीर को कृत्रिम रूप से निर्मित antibodies देकर उत्पन्न की जाती है। जैसे- एण्टीटॉक्सिन (antitoxin), गामा ग्लोबुलिन (Gamma globulin) द्वारा।