Heel effect
एक्सरे बीम की तीव्रता बीम के सभी भागों में एक समान नहीं होती है । एक्स-रे बीम की इंटेंसिटी या तीव्रता एनोड के angle पर निर्भर करती है। इस बीम की इंटेंसिटी कैथोड साइड की तुलना में एनोड साइड की ओर कम होती है । इसका मुख्य कारण एनोड की सतह के द्वारा कुछ एक्स-रे फोटोन का अवशोषण होने के कारण होता है। क्योंकि एक्सरे का प्रोडक्शन टारगेट की सतह पर न होकर सतह के कुछ अंदर होता है । अतः निकलने वाले फोटोन को एनोड साइड की तरफ टारगेट से अधिक दूरी तय करनी पड़ती है। जिससे एनोड साइड की ओर इसके अवशोषित होने की ज्यादा संभावना होती है।Heel effect के उपयोग
एनोड तथा कैथोड की ओर एक्स-रे बीम की तीव्रता में अंतर का उपयोग रेडियोग्राफी के दौरान बैलेंस डेंसिटी पाने में कर सकते हैं।
जब बॉडी पार्ट की मोटाई अलग अलग हो इसके लिए thick(मोटे) बॉडी पार्ट को कैथोड की ओर तथा thin(पतले) बॉडी पार्ट को एनोड की ओर रखेंगे ।
जैसे - थोरेसिक स्पाइन के AP व्यू में अप्पर(ऊपर) थोरेसिक स्पाइन को एनोड की ओर तथा लोअर(नीचला) थोरेसिक स्पाइन को कैथोड की ओर करते हैं ।फुट(foot) के AP व्यू एक्स-रे में ankle के मोटे पार्ट(भाग) को कैथोड की ओर रखेंगे ।
हिल इफेक्ट कम FFD पर कम प्रभावी होता है तथा ज्यादा FFD पर ज्यादा प्रभावी होता है । एक समान FFD के लिए ज्यादा बड़ी फिल्म पर हील इफेक्ट ज्यादा दिखाई देता है।