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radiation hazards and protection

 Radiation hazards

ऐसे हानिकारक प्रभाव जो radiation की अत्यधिक मात्रा से exposed होने पर शरीर पर प्रकट होने लगते है । radiation hazards कहलाते है। 

radiation hazards and protection in hindi


Radiation Hazards दो प्रकार के होते है। 

1. Somatic Radiation Hazards

2. Generic Radiation Hazards

1. Somatic Radiation Hazards ( कायिक प्रभाव )

इस प्रकार के हानिकारक प्रभावों को पुनः दो भागों में विभक्त किया गया है।

(A) Accute Effect ( तुरंत होने वाले प्रभाव ) 

इस प्रकार के हानिकारक प्रभाव radiation लगने के कुछ हफ़्तों अथवा कुछ बाद नजर आने लगते है। 

जैसे -: सिर दर्द होना , उल्टी होना , चक्कर आना , त्वचा पर लाल चकत्ते होना आदि accute effect के उदाहरण हैं।

(B) chronic Effect ( कुछ समय बाद होने वाले प्रभाव )

Radiation से होने वाले इस प्रकार के हानिकारक प्रभाव शरीर  पर कुछ महीनों अथवा वर्षो बाद नजर आते है।

 जैसे -: बालो का झड़ना  , रक्त की कमी होना , कैंसर होना , मोतियाबिंद ( cataract ) होना आदि।

2. Genetic radiation Hazards ( जनद प्रभाव )

Radiation की अत्यधिक मात्रा लगने पर इस प्रकार के हानिकारक प्रभाव एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में रूपांतरित होते है इन्हें genetic  radiation  Hazards कहते है।

जैसे -: क्रोमोसोमल डिसऑर्डर , संतानों में विकृति उत्पन्न होनाब, गूंगे , बहरे या किसी सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे होना आदि।

Protection of radiation hazards

Radiation hazards से बचने के उपाय निम्नलिखित है-

1. Time ( समय )

 radiation area में कम से कम समय बिताना चाहिए , क्योंकि जितना कम समय radiation area में बताएंगे उतना ही radiation लगने की सम्भावना कम रहेगी और मरीज को भी कम समय के लिए radiation area में रखना चाहिए। radiation से होने वाला exposure समय के समानुपाती होता हैं। 

अतः ALARA  सिद्धांत का पालन करते हुए कार्य करना चाहिए।

2. Distance ( दूरी )

Radiation exposure की दर कम करने के लिए radiation source से अधिक से अधिक दूरी बनाकर कार्य करना चाहिए।  source से जीतनी अधिक दूरी होगी उतनी ही radiation की intensity दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है ।

3. Shielding ( ढाल / परिरक्षण )

Radiation area में कार्य करते समय विकिरण से बचाव के लिए उचित परीरक्षण पदार्थ या सुरक्षा उपकरण का प्रयोग करना चाहये।

जैसे -: लेड बेरियर , लेड एप्रिन का प्रयोग इस दौरान करना चाहिए । जिसकी मोटाई 1.5 mm होनी चाहिए। 

radiation protection सिद्धांत ALARA सभी सजीव प्राकृतिक रूप से निर्मित तथा मानव निर्मित radiation source के संपर्क में आते है या जो व्यक्ति ionization Radiation के सम्पर्क में आता है तो उसके शरीर में biological   हानिकारक परिवर्तन हो सकते हैं । इसलिए व्यावसायिक कार्मिकों / रेडियोग्राफर आदि की radiation exposure dose की मात्रा इष्टतम ( निम्नतम ) रखी जानी चाहिए। इसे ALARA सिद्धांत कहते है। 

अतः radiation exposure को कम से कम रखने के लिए उपयुक्त नियंत्रण उपाय अपनाने चाहिए। ताकि न्यूनतम जोखिम के साथ अधिकतम लाभ उठाया जा सके । अर्थात ALARA सिद्धान्त के अनुसार radiation source से अधिकतम दूरी बनाकर तथा radiation area में कम से कम समय व्यतीत करना चाहिए।

Note -: यदि अति आवश्यक नही हो तो x-ray परीक्षण नही कराने चाहिए। बहुत अधिक आवश्यक हो तब ही  एक्सरे कराने चाहिए। जब निदान ( diagnose ) के लिए अन्य कोई दूसरी तकनीक सम्भव नही हो। साथ साथ ही इस दौरान सुरक्षात्मक उपाय अपनाने चाहिए। जिसे कम से कम विकिरण प्राप्त हो सके। 

गर्भवती महिलाओं के एक्सरे नही करने चाहिए। विशेषकर 8-15 सप्ताह के गर्भ में तो बिल्कुल नही करने चाहिए । क्योंकि इस अवधिकाल मे गर्भवती महिला को radiation लगने पर पैदा होने वाले बच्चे में मानसिक विकलांगता या अन्य किसी प्रकार की गड़बड़ी की बहुत अधिक सम्भावना होंती है। अति आवश्यक होने पर गर्भवती महिला के एक्सरे करते समय pelvic area लैड एप्रिन से cover कर देना चाहिए। 

एक्सरे किये जाने वाले अंग के अलावा दूसरे अन्य अंगों की radiation से बचाना चाहिए। विशेषकर gonades को बचाना अतिआवश्यक होता हैं। साथ ही साथ एक्सरे बीम को सीमित ( collimated )  कर देना चाहिए।